
एक दुर्लभ मामला सामने आया है. जुड़वा बच्चों के फिंगरप्रिंट और रेटिना हूबहू समान हैं. इस वजह से उनका आधार कार्ड नहीं बन पा रहा है, क्योंकि बायोमेट्रिक सिस्टम उन्हें अलग पहचान नहीं दे पा रहा. यह स्थिति विज्ञान के दावों को चुनौती देती है. UIDAI ने इस मामले की गहन जांच शुरू कर दी है, जिससे पता चल सके कि ऐसे दुर्लभ बच्चों का आधार कार्ड कैसे बनाया जाए. वैसे तो जुड़वा भाइयों की शक्ल काफी हद तक मिलती जुलती होती है. इसी एकरूपता की वजह से कई बार ऐसा भी होता है कि लोग इन्हें पहचानने में भी गलती कर जाते हैं. हालांकि इन परिस्थितियों में भी उनकी बॉयोमेट्रिक तरीके से पहचान हो जाती है. अब उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ऐसा मामला है कि बॉयोमेट्रिक सिस्टम ने भी पहचान कर पाने में असमर्थता जता दी है. दरअसल यहां पैदा हुए जुड़वा भाइयों की शक्ल सूरत ही नहीं, फिंगरप्रिंट और रेटिना भी एक जैसी है. यह परिस्थिति इन बच्चों का आधार कार्ड बनवाते समय पैदा हुई है. चूंकि सिस्टम इन बच्चों की पहचान अलग नहीं कर पाया है. इसकी वजह से इनका आधार कार्ड बनाने से भी मना कर दिया गया है. ऐसे हाल में बच्चों के पिता परेशान हो गए हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया में दो लोगों का फिंगरप्रिंट और रेटिना एक जैसे हो ही नहीं सकते. लेकिन यहां इन दोनों जुड़वा बच्चों ने विज्ञान के इस दावे को भी झुठला दिया है. अब वैज्ञानिकों का कहना है कि यह दुर्लभ मामला है.
मुश्किल हो गया यूआईडी
बच्चों के पिता पवन मिश्रा का कहना है कि वह एक बच्चे के आधार में बॉयोमेट्रिक अपडेट कराते हैं तो दूसरे का आधार निरस्त हो जाता. फिर जब उसका अपडेट करता है तो पहले का निरस्त हो जाता है. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट का कहना है कि पैटर्न में 55 – 74 तक सामान्य हो सकता है, लेकिन शायद यह इस तरह का पहला ही मामला होगा, जिसमें सौ फीसदी पैटर्न मैच कर रहा है. इस तरह के मामलों में अभी और रिसर्च की जरूरत है. उनका कहना है कि बहुत संभव है कि आधार के बायोमेट्रिक अपडेशन तकनीक में कोई कमी हो, जिसकी वजह से वह मामूली अंतर को रीड नहीं कर पा रही हो. अब संबंधित खबर मीडिया में आने के बाद यूआईडी के डिप्टी डायरेक्टर प्रशांत कुमार ने मामले की जांच की बात कही है.
फिर कैसे बनेगा बच्चों का आधार?
यूआईडी के अधिकारियों के मुताबिक दोनों बच्चों का फिंगरप्रिंट और रेटिना किसी हाल में एक जैसा नहीं हो सकता. इस मामले में गंभीरता से गहन जांच के लिए दोनों बच्चों को आधार के रीजनल ऑफिस में बुलाया गया है. यहां इनके फिंगरप्रिंट्स और रेटिना के महीन से महीन डिफरेंस को मशीन से रीड करने की कोशिश की जाएगी. विज्ञान को चुनौती देने वाला यह मामला कानपुर के नौबस्ता का है. बच्चों के पिता पवन मिश्रा के मुताबिक इन बच्चों का जन्म 10 जनवरी 2015 को हुआ था.











